पाठ 2: बचपन

पाठ का सार

लेखिका ने इस पाठ में अपने बचपन के बारे में बताया है इनका जन्म पिछली शताब्दी में हुआ अब उनकी उम्र दादी नानी जैसी होगी उनके पहनावे में बहुत अंतर आया है पहले वो फ्रॉक स्कर्ट ,लहंगे गरारे पहनती थी अब चूड़ीदार घेरदार कुर्ती पहनती है जो उन्हें अभी भी याद है।

उन्हें अपने मोज़े और स्टाकिंग भी याद है उन्हें अपने मोज़े खुद धोने पड़ते थे हर रविवार को अपने जूते पे पोलिश करती थी हेर शनिवार अपनी सेहत ठीक करने के लिए उन्हें ओलिव आयल पीना पड़ता था। उन दिनों रेडियो ,टेलीविजन नहीं था कुछ घरों में ग्रामोफ़ोन थे पहले के खाने और अब के खाने में भी अंतर आया है कचौड़ी समोसा पेटीज में बदल गया है शरबती को पेप्सी बन गया है लेखिका के घर से मॉल नज़दीक था उन्हें हफ्ते में एक बार चॉक्लेट खरीदने की छूट थी उन्हें चना ज़ोर गरम और अनारदाना चूर्ण पसंद था।

लेखिका ने शिमला रिज पैर बहुत मजे किये ,सूर्यास्त का समय , चर्च की घंटियां , स्कैंडल पॉइंट के सामने शोरूम में शिमला - कालका ट्रैन का मॉडल। हवाई जहाज उन्हें पंख फैलाये पक्षी लगते थे ,दुकान के पास एक और दूकान थी जहां से लेखिका ने चश्मा बनवाया था जहां के डॉक्टर अंग्रेज थे ,उन्हें यह आश्वासन दिया गया था की उनका चश्मा उतर जायेगा परन्तु आजतक नहीं उतरा वह रात में अँधेरे में जो पड़ती थी उनके भए उन्हें सूरत बनी लंगूर कहके चिढ़ाते थे पर धीरे धीरे चश्मा उनसे घुल मिल गया।  

पाठ का अर्थ

लेखिका यानि कृष्णा सोबती ने बचपन संस्मरण में अपने बचपन के बारे में बताया है की उनका पहनावा कैसा था वह  रंग बिरंगे  कपड़े पहनती थी ,अब वह सफ़ेद रंग के कपड़े पहनती है पहले स्कर्ट ,लहंगे, गरारे पहनती थी अब चूड़ीदार व कुर्ते पहनती है। अपने मोज़े खुद धोना , जूते पॉलिश करना ,पुराने जूते पहनना उन्हें पसंद था ,सेहत ठीक रहे इसलिए ओलिव आयल पीती थी। पहले रेडिओ नहीं थे ग्रामोफ़ोन ही थे ,खाने में पहले कुल्फी थी अब आइसक्रीम हो गयी , कचोरी समोसा  पेटीज हो गया , कोक पेप्सी बन गयी।  कृष्णा जी को चॉक्लेट ,चना जोर गर्म बहुत पसंद है।

इन्होने शिमला रिज पर काफी आनंद लिया है चर्च की घंटी बजना , सूर्यास्त ये भाता था ,स्कैंडल पॉइंट के सामने शोरूम में शिमला कालका का मॉडल बना था वही हवाई जहाज उन्हें देखना पसंद था वही पड़ोस की दुकान से चश्मा बनवाया था वो चश्मा आज तक नहीं उतरा क्योकि दिन की रौशनी में न पढ़कर रात को लैंप में पड़ती थी चश्मा लगाने पर भाई लोग चिढ़ाते थे लंगूर बोलकर धीरे धीरे चश्मा लेखिका से घुल मिल गया।

कठिन शब्द- अर्थ

सयाना- होशियार

शताब्दी - एक सौ साल का समय

फ्रिल - झालर

चलन - प्रचलन में

केस्टर आयल - अरंडी का तेल

ऑलिव आयल - जैतून का तेल

खुराक - निश्चित मात्रा

मितली - उल्टिया

निरा - केवल

खीजना - क्रोध होना