कविता का अर्थ

पाठ 10 झाँसी कि रानी

कविता का अर्थ 

कविता साहित्य का एक अंग है। कविता की एक निश्चित परिभाषा देना कठिन है लेकिन इतना कहा जा सकता है कि कविता आत्मा द्वारा अनुभूत भावों एवं विचारों का प्रस्फुटन है जो छन्द और नियमित गति से बंधी होने के कारण ताल तथा लय को अपने में समाविष्ट करती हैं। हिन्दी के कई विद्वानों ने अपने विचारासार कविता को परिभाषित करने का प्रयास किया हैं।

पं. जगन्नाथ के अनुसार," रमणीयार्थ प्रतिपादकः शब्द: काव्यम्,' सुन्दर अर्थ प्रतिपादित करने वाला शब्द ही काव्य कहलाता हैं।"

कविता

इस कविता में सं १८५७ कि लड़ाई जो अंग्रेज़ों के खिलाफ थी जिसमे महानी लक्ष्मीबाई  ने अपनी तलवार के प्रदर्शन द्वारा भारतीयों के मन में आज़ादी कि लहर शुरू कर दी थी, भारतीयों में अंग्रेज़ों को दूर भगाने कि भावना उत्पन्न हो उठी थी। 

सिंहासन हिल उठे , राजवंशों ने भरकुटी तानी थी।,

बूढ़े भारत में भी आए फिर से नयी जवानी थी ,

गुमी हुए आज़ादी कि कीमत सबने पहचानी थी ,

दूर फिरंगी को करने कि सबने मन में ठानी थी ,

चमक उठी सं सत्तावन में ,वह तलवार पुराणी थी।

बुंदेले हरबोलों के मुँह , हमने सुनी कहानी थी।

खूब लड़ी मर्दानी वह तो ,झांसी वाली रानी थी।।

कविता कि व्याख्या - जब रानी लक्ष्मीबाई रानी बनी तब भारतीयों में आज़ादी का मन्त्र फूक दिया जिन अंग्रेजों के जुल्म से राजवंशियों के सिंहासन छिन गए थे उन्होंने भी अंग्रेज़ों से बदला लेने कि ठान ली थी जिससे उनकी क्रोध में भौहें तन गयी थी वह भारत जो आज़ादी को लगभग भूल सा गया था अब फिर से आज़ादी कि आशा जागी। अब सभी भारतीयों को आज़ादी कि सही कीमत समझ आयी जिसे वे खो चुके थे अब सभी ने अंग्रेज़ों को भारत से बाहर भगाने कि ठान ली थी जब १८५७ में महारानी लक्ष्मीबाई कि तलवार युद्ध में चमक उठी थी यह कहानी बुंदेलखंड के हरबोलों के मुँह से सुनने को मिलती है कि किस प्रकार झांसी कि रात्रि लक्ष्मीबाई ने पुरुषों कि भाँती अंग्रेज़ों से लड़ाई की।

कानपूर के नाना कि मुँहबोली बेहेन 'छबीली' थी ,

लक्ष्मीबाई नाम, पिता कि वह संतान अकेली थी,

नाना के संग पढ़ती थी वह , नाना के संग खेली थी ,

बरछी , ढाल , कृपाण  , कटारी उसकी यही सहेली थी ,

वीर शिवजी कि गाथाये , उसको याद जबानी थी।

बुंदेले हरबोलों के मुँह ,हमने सुनी कहानी थी।

खूब लड़ी मर्दानी वह तो ,झांसीवाली रानी थी।।

कविता कि व्याख्या - रानी लक्ष्मीबाई कानपुर के नाना साहेब कि मुँहबोली बहन थी जिनका बचपन से नाम छबीली उन्होंने रखा थ।  लक्ष्मीबाई अपने पिताजी कि एकलौती संतान थी।  वह नाना साहेब के साथ ही खेल कूद कर बड़ी हुए है उन्ही के साथ पढ़ती भी थी , रानी लक्ष्मीबाई को बचपन में गुदोदो गुड़ियों से ज़्यादा बरछी ,ढाल , तलवार , भाला, कटार इन सबसे खेलना अधिक प्रिय था वह बचपन से ही खूब साहसी और निडर थी तभी तो वीर शिवाजी कि गाथाये सुन सुनके बड़ी हुई है जो उन्हें मुँह जबानी याद है , उन्ही वीरांगना लक्ष्मीबाई कि कहानी हमने बुंदेलों के मुँह से हरबोलों के मुँह से सुनी है कि किस प्रकार पुरषों कि तरह वह अग्रेजो से लड़ी थी।

लक्ष्मी थी या दुर्गा थी ,वह स्वयं वीरता कि अवतार ,

देख मराठे पुलकित होते , उसकी तलवारों के वार ,

नकली युद्ध , व्यूह कि रचना और खेलना खूब शिकार ,

सैन्य घेरना , दुर्ग तोडना , ये थे उसके प्रिय खिलवार,

महाराष्ट्र - कुल - देवी उसकी , भी आराध्य भवानी थी।

बुंदेले हरबोलों के मुँह ,हमने सुनी कहानी थी।

खूब लड़ी मर्दानी वह तो , झांसी वाली रानी थी।।

कविता कि व्याख्या -  रानी लक्ष्मीबाई माँ लक्ष्मी और दुर्गा जैसे दुष्टों का विनाश करती है उनकी तरह वीरता से तलवार चला रही है उनके तलवार चलाने के अंदाज़ को देखकर सभी मराठा खुश हो रहे है व्यूह रचना ,नकली युद्ध लड़ना , शिकार करना , लड़ाई करना , किला तोडना ,सेनिको से लड़ाई ये सब ही इनके प्रिये खेल थे। मराठाओ जी कि जैसे कुलदेवी भावी थी इनकी भी कुलदेवी भवानी थी उन्ही कि आराधना करती थी इस रूप का वर्णन ही बुंदेलखंड के मुंहबोले लोग कर रहे है कि रानी लक्ष्मीबाई पुरुषों कि भांति लडत्ती थी।

हुई वीरता कि वैभव के साथ सगाई झाँसी में ,

ब्याह हुआ रानी बन आए लक्ष्मीबाई झाँसी में ,

राजमहल में बजी बढ़ाए खुशियां छाई झाँसी में ,

सुभट बुंदेलों कि विरुदावली - सी वह आए झांसी में ,

चित्र ने अर्जुन को पाया , शिव से मिली भवानी थी।

बुंदेले हरबोलों के मुँह ,हमने सुनी कहानी थी।

खूब लड़ी मर्दानी वह तो ,झाँसी वाली रानी थी।।

कविता कि व्याख्या - लक्ष्मीबाई वीरता कि साकार मूर्ती थी जिनकी सगाई झाँसी के राजा से होगयी  उनका विवाह राजा गंगाधर राओ के साथ होगया और वह महारानी बनकर झाँसी आगयी राजमहल में उनके आने से चोरों ओर खुशियां ही खुशियाँ छा गयी ,भात लोग उनके विवाह के गीत गए रहे थे उनकी जोड़ी शिव पार्वती और चित्र अर्जुन कि तरह लग रही थी यह सब कहानी बुंदेलखंड के हरबोलों के मुँह से सुना है कि रानी लक्ष्मीबाई पुरुषों कि भाति लड़ाई करती थी।

उदित हुआ सौभाग्य , मुदित महलों में उजयाली छाई  ,

किन्तु कालगति चुपके - चुपके काली घटा घेर लाए ,

तीर चलानेवाले कर में उसे चूड़ियां कब भाई ,

रानी विधवा हुए हाय ! विधि को भी नहीं दया आई,

निसंतान मरे राजा जी , रानी शोक- समानी थी।

बुंदेले मुँहबोलों के मुँह ,हमने सुनी कहानी थी

खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी।।

कविता कि व्याख्या -  रानी जब विवाह करके झाँसी आई तो चहु ओर प्रकाश और खुशियाँ ही खुशियां थी किन्तु काल घटा चुपके चुपके दबे पाऊँ आ रही थी काल को तीर चलने वाले हाथों में चूड़ियां न भाई समय को भी उनपे दया नहीं आयी राजा जी बिना संतान का मुख देखे ही असमय वीरगति को प्राप्त हुये जिससे रानी विधवा होगयी और शोकाकुल होगयी न पति रहा न संतान थी यह सब कहानी हमने बुन्देल के हरबोलों  के मुँह से सुनी थी  कि जो रानी पुरुषों कि भाई लड़ती थी उनकी क्या दशा थी जब वो विधवा हु।

बुझा दीप झाँसी का तब डलहौजी मन में हर्षाया ,

राज्य हड़प करने का उसने यह अच्छा अवसर पाया ,

फ़ौरन फौजें भेज दुर्ग पर अपना झंडा फेहराया ,

लावारिस का वारिस बैंकर ब्रिटिश राज्य झांसी आया ,

अश्रुपूर्ण रानी ने देखा , झांसी हुई बिरानी थी।

बुंदेले हरबोलों के मुँह ,हमने सुनी कहानी थी

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

कविता कि व्याख्या - जब राजा जी कि मृत्यु हुई डलहौजी मन ही मन बहुत खुश हुआ।  उसने झांसी को हड़पने का विचार बना लिया उसने मौका देखते हुये तुरंत अपनी सभी सेना भेजी और लावारिस झांसी का मालिक बनके ब्रिटिश ने अपना झंडा लहरा दिया ,झाँसी को पराया देख रानी कि आंखों में आंसू आगये यह सब गाथा बुन्देल खंड मुंहबोले लोग बता रहे है कि रानी लक्ष्मीबाई किस प्रकार अंग्रेज़ों से पुरुषों कि भाति लड़ी।

अनुनय - विनय नहीं सुनता है , विकत फिरंगी कि माया ,

व्यापारी बन दया चाहता था  जब यह भारत आया ,

डलहौजी ने पैर पसारे अब तो पलट गयी काया ,

राजाओं नव्वों को भी उसने पैरों ठुकराया।

रानी दासी बनी , बनी यह दासी महारानी थी।

बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।

खूब लड़ी मर्दानी वह तो , झांसीवाली रानी थी।।

कविता कि व्याख्या - अग्रेज विनर्मता का भाव लेते हुये भारत आये व्यापारी बनके भारत में पैर जमाये उन्होंने साडी काया ही पलट कर दी थी सभी राजाओं का राज्य हड़प लिया और उन्हें ठुकरा दिया सभी रानिया दसिया बन गयी परन्तु न हार माने वाली एक लौटी दासी न बनके महारानी बनी ये लक्ष्मीबाई यह सब गाथा बुन्देल हरबोलों के मुँह से हमने सुना कि किस प्रकार उन्होंने अग्रेजो का सामना एक पुरुष कि भाति किया खूब लड़ी अंग्रेज़ों से।

छीनी राजधानी देहली कि , लिया लखनऊ बातों - बात ,

.....................खूब लड़ी मर्दानी वह तो ,झाँसी वाली रानी थी।।

कविता कि व्याख्या - अंग्रेजों ने दिल्ली लखनऊ को अपने कब्ज़े में कर लिए और बिठूर में पेशवा को कैद कर लिया नागपुर, उदयपुर , तंजोर ,सतारा , कर्नाटक कि तो बात ही क्या सिंध , पंजाब ,ब्रह्म पैर भी उन्होंने आधिपत्य जमा लिया था , बुन्देल के मुँह से यह कहानी सुनते है कि रानी लक्ष्मीबाई पुरुषों कि तरह अंग्रेजो से लड़ी।।

 रानी रोई रनिवासों में , बेगम गम से थी बेजार ,

.....................................खूब लड़ी मर्दानी वह तो , खूब लड़ी मर्दानी वह तो ,झाँसी वाली रानी थी।। 

कविता कि व्याख्या- अंग्रेज़ इतने निर्लज थे कि रानी और बेगम कि इज़्ज़त से खेलते थे , कलकत्ता के बाज़ार में उनके घने और कपड़े तक बिकते थे सरे आम नीलामी कि वारदाते अखबार में छपती थी नागपुर के ज़ेवर लेलो लखनऊ के नौ लख्खा हार अग्रेज कुछ भी नहीं छोड़ते थे

यु भारत कि इज़्ज़त सरेआम नीलाम हो रही थी पर्दे में जो इज़्ज़त छिपती थी आज वो नीलाम हो रही थी यह सब गाथा बुन्देल के मुँह से सुना है कि झाँसी कि रानी  किस प्रकार अंग्रेज़ो से पुरुषों कि भाँती लड़ी थी।।

कुटियों में थी विषम वेदना , महलों में आहात अपमान ,

...............................खूब लड़ी मर्दानी वह तो , झाँसी वाली रानी थी।।

कविता कि व्याख्या - कुटियों में रहने में बड़ी ही दुखदाई था व्ही महलों में रहने पैर अपमान सेहेन करना पढ़ रहा था परन्तु वीर सैनको के मन अपने पूर्वजों कि वीरता का गौरव अभिमान था नाना साहेब के नेतृत्व में पेशवा सेना जूता रहे थे अंग्रेज़ों के खिलाफ उधर छबीली यानि लक्ष्मीबाई ने युद्ध भूमि में चंडी का रूप ले लिया  था  इन सबके प्रयासों से भारत  इ फिरसे स्वतंत्रता  कि लहर जाग उठी यह सब गाथा बुंदेलखंड के मुहसे सुनने को मिलती है कि किस प्रकार रानी लक्ष्मी बाए पुरुषों कि भाति लड़ी।।

महलों ने दी आग ,झोपडी ने ज्वाला सुलगाए थी ,

..................................खूब लड़ी मर्दानी वह तो ,

झांसी वाली रानी थी।।

कविता कि व्याख्या - स्वतंत्रता कि आग कि चिंगारी महलों से लेकर झोपडी तक बाद चली यह सबके अंतर्मन से आरही थी ,झाँसी,दिल्ली ,लखनऊ से लेकर मेरठ , कानपुर , पटना तक स्वतंत्रता कि लहर उड़ खड़ी हो गयी जबलपुर , कोल्हापुर में भी हलचल मच गयी थी यह सब गाथा हमने बुंदेलखंड के मुँह से सुना था कि किस प्रकार लक्ष्मी बाइ पुरुषों के भाति लड़ी।।

इस स्वतंत्रता - महायज्ञ  में के वीरवर आये काम ,

....................................खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसीवाली रानी थी।।

कविता कि व्याख्या - इस स्वतंत्रता संग्राम में के लोगो ने भाग लिया जैसे नाना साहब , तांतियां , अजीमुल्ला सरनाम , अहमद शाह मौलवी , ठाकुर कुंवर सिंह , सैनिक अभिराम इन सभी के नाम इतिहास में अमर रहेंगे , आज उनकी कुबानी जुर्म कहलाती है हमने बुन्देल मुँहबोलों से उनकी कहानी सुनी थी कि किस प्रकार रानी पुरुषों कि भाति लड़ी।।

इनकी गाथा चोर चले ..........................झांसीवाली रानी थी।।

कविता कि व्याख्या - रानी लक्ष्मीबाई पुरुषों कि भाति मैदान में खड़ी है लेफ्टिनेंट वाकर उनसे लड़ने जब मैदान में पहुंचा रानी ने अपनी तलवार उठा ली  और खूब लड़ी वह ज़ख़्मी होकर वह से भाग निकला इस प्रकार पुरुषों कि भाति अंग्रेज़ों से वह लड़ रही थी जो बुंदेलखंड के लोग बताते है।।

रानी बड़ी कॉपी .........................। झांसीवाली रानी थी।।

कविता कि व्याख्या - रानी जब कालपी आयी सौ मील चलकर तो उनका घोडा ठाकेर ज़मीन पैर गिर पड़ा और उसकी मृत्यु हो गयी रानी ने हार नहीं मानी यमुना तात पैर वह अंग्रेज़ों को हार कि धुल चटाई रानी ने फिर ग्वालियर पैर अधिकार किया जो उनकी पहली जीत थी अंग्रेज़ों के मित्र सिंधिया ने उनके लिए राजधानी छोड़ दी इस प्रकार वो बहुत बहादुरी से लड़ी पुरुषों कि भाटी जो बुंदेलखंड के मुंहबोले लोग कहते है।।

विजय मिली , पर.............................. झांसीवाली रानी थी।।

कविता कि व्याख्या - रानी लक्ष्मीबाई से मिली करारी हार के बाद अंग्रेजों ने भारी सेना भिजवाई थी और अबकी बार रानी से लड़ने जनरल स्मिथ आया था पैर उसे भी हार का मुख हे देखना पड़ा रानी के साथ के लिए उनकी दो सहेलिया काना और मंडरा ने युद्ध भूमि में अपनी युद्ध निति का खूब प्रदर्शन किया परन्तु बाज़ी थोड़ी पलट सी गयी थी पीछे से ह्यूरोज़ ने अपनी सेना लेकर रानी को और उनकी छोटी टुकड़ी को घेर लिया था , यह सब गाथा बुन्देल के मुँह से सुनने को मिलती है किस प्रकार उन्होंने पुरुषों की भाटी अग्रेज से लोहा लिया।

तो  भी रानी मार - काटकर ...........................झांसीवाली रानी थी।।  

कविता की व्याख्या - रानी शत्रुओं से घिरी हुए थी फिर भी वह अपनी तलवार चलाकर अपने लिए रास्ता निकाल हे ले रही थी परन्तु नया घोडा था जो एक नाले में जाकर फस गया उसी समय दुश्मनों ने उन्हें चारो और से घेर लिया और उनपे प्रहार करने लगे रानी घायल झख्मी होक शेरनी की तरह लड़ती हुए वीर गति को प्राप्त हो गयी शायद विधाता को यही मंज़ूर था। बुन्देल के मुँहबोलों से यह गाथा सुनते है की किस प्रकार रानी ,अंग्रेजो से पुरुषों की भाति लड़ी।

रानी गयी सिधार ..............................................झांसीवाली रानी थी।।

कविता की व्याख्या - झांसी की रानी अब स्वर्ग को सिद्धार गयी उनकी आलोकिक सवारी अब स्वर्ग की ओर जानी थी।  उनकी आत्मा रुपी तेज अब परमात्मा से मिल गया जिस पर उन्हें अधिकार था अब वह मोक्ष को पा गयी मात्र तेईस साल की उम्र में उन्होंने वीरता से लड़ी ऐसा लगता है भारत में किसी देवी ने जन्म लिया हो जो आज़ादी का पाठ पड़ा गयी स्वतंत्रता का मार्ग दिख गयी यह सब गाथा बुंदेलों के मुँह से सुनी है की किस प्रकार पुरुषों की भाटी वो अंग्रेज़ों से लड़ी थी ओर वीर गति को प्राप्त हुई।

जाओ रानी याद रखेंगे .................................झांसीवाली रानी थी।।

कविता की व्याख्या - झांसी की रानी यह बलिदान सभी भारतवासी हमेशा याद रखेंगे, उन्होंने जो भारत की स्वतंत्रता के लिए बलिदान दिया है वो कभी खाली नहीं जायेगा चाहे ये अँगरेज़ इतिहास को जला दे सच्चाई कोण छुपा दे चाहे यह झाँसी को उड़वा दे परन्तु जिस वीरता से आप लड़ी वह पंचम हमेशा लहराएगा आपकी पहचान आप खुद होंगी जो कभी न मिटने वाली हमे वीरता की निशानी दे गयी इन्ही वीर गाथाओं को बुन्देल के हरबोले कह रहे है की यही वो झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई है जो स्वतंत्रता के लिए अग्रेजो से पुरुषों की भाति लड़ी थी।

कठिन शब्द अर्थ

भ्रकुटी - भौहें

फिरंगी - अँगरेज़

गाथाएं - कहानिया

कृपाण - तलवार

दुर्ग - किला

सिधार - मरकर

द्वन्द - दो व्यक्तियों का परस्पर युद्ध

विषम - भयानक

सीख - शिक्षा 

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