पाठ 14 लोकगीत

लेखक का परिचय - भगवतशरण उपाध्याय (१९१० - १९८२) शिक्षाविद् तथा हिन्दी साहित्यकार थे। भगवतशरण उपाध्याय का जन्म 1910 ईस्वी को उजियारपुर, जिला- बलिया (उत्तर प्रदेश) में हुआ। इनका निधन 12 अगस्त 1982 ई0 को हुआ। उपाध्याय जी ने संस्कृत, हिन्दी साहित्य, इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्त्व का गहन अध्ययन किया।

यह पाठ एक निबंध है जिसमे लोकगीत की उत्त्पति , विकास , महत्व को अच्छे से बताया गया है लोकगीत वह है जो किसी जगह की मुख्य विशेषता बताते है जैसे कजरी, गिद्दा आदि यह ढोल , मंजीरा , ढोलक , बांसुरी , झांझ पे गाये बजाए जाते है पहले ये शास्त्रीय संगीत से खराब समझा जाता था परन्तु बदलते समय ने इसको बढ़ावा दिया इसकी अहमियत बड़ा दी।

आदिवासी मध्य प्रदेश , दकन , छोटा नागपुर आदि क्षेत्रों में फैली हुए है इनके संगीत बहुत सजीव होते है पहाड़ी गीत भिन्न प्रकार के होते है गढ़वाल, किन्नौर , कांगड़ा सबका संगीत अलग है गाने की अपनी विधियां है विभिनत्ता में भी इनका नाम 'पहाड़ी ' पड़ गय।  चैती , कजरी, सावन सभी बनारस उत्तरप्रदेश की और गए जाते है राजस्थान में ढोला मारु पंजाब में माहिया आदि गए जाते है।

 लोकगीत रोज़मर्रा की ज़िन्दगी पर आधारित होते है इनके राग भी पीलू , दुर्गा , सारंग है। देहात में केहरवा , बिरह आदि राग गाये जाते है।  बिहार में ' बिदेसिया' बहुत प्रसिद्ध है इनका विषय  प्रियसी , परदेसी प्रेम यह सब होता है जंगल की जातियों की दल गीत होते है जो बिरहा पे गाये जाते है बुंदेलखंड में आल्हा  के गीत इनकी उत्तपत्ति महाकाव्य से मानी जाती है धीरे धीरे दुसरे देहाती लोगों न्र अपनी भाषा में इसे उतारा। इन गीतों को नट रस्सियों पे खेल करके गाते है।

स्त्रियों  द्वारा लोकगीत  ज़्यादा गाया जाता है रचना भी व्ही करती है हमारे भारत के लोकगीत अन्य से एकदम अलग है क्युकी इन्हे जन्म, विवाह , ज्योनार आदि दशाओं में गाया जाता है बारहमासा गीत पुरुषों के साथ स्त्रिया गाती है स्त्रियों के गीत दल बनकर गाये जाते है होली व बरसात में कजरी सुनने वाली होती है पूर्वी भारत में अधिकतर मैथिल कोकिल विद्यापति के गीत गाये जाते है , गुजरात में गरबा गान प्रसिद्ध है जिसमे औरतें घूम घूम के नृत्य करती है।  गाँव के गीतों के अनेक प्रकार है।

कठिन शब्द अर्थ

करताल - तालियां

हेय  - हींन 

मर्म को छूना - प्रभावित करना

सिरजती - बनाती

पुट - अंश

उद्दाम - निरकुंश