पाठ 13.  मैं सबसे छोटी होऊँ

कविता का अर्थ - कविता छंद निबद्ध जिसमे भाव को व्यक्त करने की शक्ति है वह विधा है।

कविता- इस कविता का आशय यह है कि बच्ची अपनी माँ की सबसे छोटी संतान बनकर रहना चाहती है क्योंकि बड़े हो जाने पर उसका साथ माँ से छूट जाता है। जिस तरह छोटे रहने पर माँ हमेशा बच्ची के साथ रहकर समय तथा प्यार देती थी, वैसा अब नहीं करती है। वह हमेशा माँ का साथ चाहती है।

सुमित्रानन्द पंत का जीवन परिचय:- प्रस्तुत कविता हिन्दी भाषा के प्रसिद्ध कवि और साहित्यकार श्री सुमित्रानंदन पंत जी के द्वारा लिखी गई है। इनका जन्म अल्मोड़ा जिले के कौसानी नामक ग्राम में हुआ था। इन्होंने अपनी हाईस्कूल की शिक्षा इलाहाबाद से ली तथा वहीं से उनकी काव्यचेतना का उद्गम हुआ। इन्होंने कई काव्य रचनाओं का लेखन किया है, जिनमें पल्लव, ग्रंथि, गुंजन तथा कला और बूढ़ा चांद इनकी सर्वश्रेष्ठ रचनाएं हैं। इन्हें अपनी कृतियों के लिए पद्मभूषण, साहित्य अकादमी और ज्ञानपीठ पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था। यह हिन्दी साहित्य में छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक थे।

मैं सबसे छोटी होऊं कविता का सार:– प्रस्तुत कविता में एक बालिका अपनी मां की सबसे छोटी संतान बनने की इच्छा रखती है। ऐसा करने से वह सदा अपनी मां का प्यार और दुलार पाती रहेगी। उसकी गोद में खेल पाएगी। उसकी मांँ हमेशा उसे अपने आंँचल में रखेगी, उसे कभी अकेला नहीं छोड़ेगी। उसे लगता है कि वह सबसे छोटी होगी, तो माँ उसका सबसे अधिक ध्यान रखेगी। सबसे छोटी होने से उसकी मां उसे अपने हाथ से नहलाएगी, सजाएगी और संवारेगी। उसे प्यार से परियों की कहानी सुनाकर सुलाएगी। वह कभी बड़ी नहीं होना चाहती क्योंकि इससे वह अपनी मांँ का सुरक्षित और स्नेह से भरा आंँचल खो देगी।

मैं सबसे छोटी होऊ, तेरी गोदी में सोऊँ

तेरा अंचल पकड़ - पकड़कर , फिरूं सदा माँ ! तेरे साथ

कभी न छोड़ू तेरा साथ

व्याख्या - बच्ची कह रही है उसकी तम्मना है की वह अपनी माँ की सबसे छोटी बेटी बनी रह और उनकी गॉड में सो सके। प्यार से उनका आँचल पकड़ी रहु उनका हाथ कभी न छोड़ू।

बड़ा बनाकर पहले हमको , तू पीछे छलती है मात !

हाथ पकड़ फिर सदा हमारे , साथ नहीं फिरती दिन रात !

अपने कर से खिला , धुला  मुख , धुल पोंछ, सज्जित कर गात ,

थमा खिलोने , नहीं सुनाती , हमें सुखद परियों की बात !

व्याख्या - बच्ची कह रही है माँ जैसे हे हम बड़े हो गए तूने हमारे आगे पीछे घूमना छोड़ दिया हमे तो छोटा हे बना रहना है। पहले छोटे पे हमारा मुख भी धुलती थी नहलाती थी हमे सजा सवारकर रखती थी परन्तु बड़े होने होने न खिलौनों से खिलाती है न हे परियों की कहानी सुनती है।

ऐसी बड़ी न होऊ मैं,

तेरा स्नेह न खोउ मैं ,

तेरे अंचल की छाया में

छिपी राहु निस्पृह , निर्भय ,

कहु  - दिखा दे चंद्रोदय !

व्याख्या - बच्ची माँ से कहती है की मुझे बड़े नहीं होना है क्युकी अगर मैं बड़ी हो गयी तो प्यार भरा ममता का आँचल जिसमे मैं बिना किसी डर के प्यार से सो जाती हु वह सब मुझसे छिन जायेगा इसलिए माँ के आँचल में हे मुझे चाँद को देखना है बड़ा होने पे इन सब चीज़ों से वंचित हो जाउंगी।

कठिन शब्द अर्थ

छलती - धोखा देना

मात - माँ

फिरती - घूमना

सज्जित - सजाना

स्नेह - ममता

निर्भय - बिना डर के

चंद्रोदय - चाँद का उदय