पाठ 4: चाँद से थोड़ी - सी गप्पें

कविता आत्मा द्वारा अनुभूत भावों एवं विचारों का प्रस्फुटन है जो छन्द और नियमित गति से बंधी होने के कारण ताल तथा लय को अपने में समाविष्ट करती हैं। प्रस्तुत कविता हिन्दी साहित्य के प्रसिद्ध लेखक और कवि श्री शमशेर बहादुर सिंह द्वारा लिखी गई है। इस कविता में एक दस-ग्यारह साल की लड़की को चाँद से गप्पें लड़ाते हुए अर्थात् बातें करते हुए दिखाया गया है। वह चाँद से कह रही है कि यूँ तो आप गोल हैं, पर थोड़े तिरछे-से नज़र आते हैं।

गोल हैं खूब मगर

आप तिरछे नज़र आते हैं ज़रा।

आप पहने हुए हैं कुल आकाश

तारों- जड़ा ;

सिर्फ मुँह खोले हुए अपना

गोरा - चिट्टा

गोल - मटोल ,

अर्थ - चाँद खूब गोल मटोल सा है परन्तु वो दिखने में थोड़ा टेड़ा नज़र आता है ,ये पूरा आकाश चाँद का कपडा है जिसमे तारे मानो सितारों की तरह जड़े हुए है चाँद इस प्रकार आकाश रुपी वस्त्र पहना है जिसमे उसका मुँह ही चमक रहा है जो गोरा चिट्टा यानि सफ़ेद है और गोल मटोल है।

अपनी पोशाक को फैलाये हुए चारों सिम्त।

आप कुछ तिरछे नज़र आते हैं जाने कैसे

- खूब हैं गोकि !

वाह जी ,  वाह !

हमको बुद्धू ही निरा समझा है !

हम समझते ही नहीं जैसे की !

आपको बीमारी है :

आप घटते है तो घटते ही चले जाते हैं,

और बढ़ते है तो बस यानि की

बढ़ते ही चले जाते हैं-

दम नहीं लेते है  जब तक बिलकुल ही

गोल न हो जाएँ ,

बिलकुल गोल।

यह मरज़ आपका अच्छा ही नहीं होने में .......

आता है।

अर्थ - लड़की चाँद से कहती है आपने जो पोशाक यानि वस्त्र पहने है वो चारो दिशाओं में फैले हुए है ,आप फिर भी तिरछे नज़र आते है पता नहीं क्यों , मैं नासमझ नहीं हूँ सब समझती हूँ की आपको कोई बीमारी है जिसकी वजहसे आप बढ़ते है तो बढ़ते चले जाते है गोल हो जाते है घटते है तो घटते चले जाते है , आपकी ये बिमारी ठीक नहीं होने में आ रही है। अर्थात चाँद पंद्रह दिन अमावस्या के अगले दिन से लेकर पूर्णिमा तक बड़ा होता है। पूर्णिमा के अगले दिन से अमावस्या तक फिर छोटा होता चला जाता है। चाँद को यह क्रम निरंतर चलता रहता है ।

 कठिन शब्द अर्थ

सिम्त - दिशाए

नीरा - पूरा

सुलभ - आसानी से मिलना

मर्ज - बीमारी 

पोशाक - वस्त्र , कपडे

बुद्धू - नासमझ