पाठ 8: ऐसे ऐसे

नाटक का उद्देश्य अर्थ

'ऐसे ऐसे' एकांकी विष्णु प्रभाकर द्वारा लिखा गया है जिसमे उस बच्चे की बीमारी का बहाना बताया गया है जो स्कूल के गृह कार्य करने की वजहसे होता है |बीमारी का बहाना बनाते है इस प्रकार के बच्चे माँ बाप को तरह तरह के भने बनके ,झूठ बोलके परेशान करते है जो की गलत है हालाँकि मोहन की इस नादानी पे अंत में सब हसने लगे पर अगर मोहन समय से अपना कार्य खत्म केर लेता तो उसे ऐसे ऐसे बहाना नहीं बनाना पड़ता न ही किसी को परेशानी होती।

एकांकी  का सार

मोहन बेड पर पड़ा पेट पकड़ कर कराह रहा था  बगल में बैठी उनकी माँ गर्म पानी की बोतल से पेट सेक रही थी वो पिताजी से पूछी की उसने क्या खाया उन्होंने बताया की केला संतरा खाया था बस दफ्तर से आया बस अड्डे पे बोला की पेट में ऐसे ऐसे हो रहा है। माँ ने मोहन को चूरन ,हींग , पेपरमेंट दिया पर कुछ भी फायदा नहीं हुआ डॉक्टर कबतक आएंगे फ़ोन की घंटी बजी पिताजी ने बताया की डॉक्टर अभी रहे है।

थोड़ी देर बाद वैध जी आये जिहोने बताया की उसके शरीर में हवा भरने के कारण ऐसा हो रहा है। उसे कब्ज़ है पुड़िया से ठीक हो जायेगा। बाद में डॉक्टर साहब आते है जो जीभ देखकर उसे बदहज़मी बताते है वो दवाई भेजने के लिए बोलके निकल जाते है।

डॉक्टर के बाद पड़ोसिन आती है जो नई नई बीमारिया बताती है तभी मास्टर जी आते है जो गृहकार्य करने का बहाना समझ जाते है मास्टर जी उसे दो दिन का समय देते है कार्य पूरा करने के लिए माँ यह सुनकर दांग रह जाती है ओर पिताजी के हाथ से दवा की शीशी टूट जाती है औऱ सभी हस पड़ते है।

कठिन शब्द अर्थ

अंट शंट- ऐसी वैसी चीज़े

हवाइयां उड़ना - घबराना

भला चंगा - स्वस्थ

बला - मुसीबत

वात - शरीर में वायु बढ़ने पर जो बीमारी होती है

गुलज़ार - चहल पहल वाला

बदहज़मी - पाचन खराब होना

छका  देना -  परेशान करना

अट्हास - ज़ोर से हसी