- Books Name
- Sparsh and Sanchayan Bhag-2
- Publication
- Hindi ki pathshala
- Course
- CBSE Class 10
- Subject
- Hindi
पाठ-15 अब कहां दूसरों के दुख से दुखी होने वाले
निदा फ़ाज़ली (1938-2016)
लेखक-परिचय-
12 अक्तूबर 1938 को दिल्ली में जन्मे निदा फ़ाज़ली का बचपन ग्वालियर में बीता। निदा फ़ाज़ली उर्दू की साठोत्तरी पीढ़ी के महत्त्वपूर्ण कवि माने जाते हैं। आम बोलचाल की भाषा में और सरलता से किसी के भी दिलोदिमाग में घर कर सके, ऐसी कविता करने में इन्हें महारत हासिल है।
निदा फ़ाज़ली की लफ़्ज़ों का पुल नामक कविता की पहली पुस्तक आई। शायरी की किताब खोया हुआ सा कुछ के लिए 1999 के साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित निदा फ़ाज़ली की आत्मकथा का पहला भाग दीवारों के बीच और दूसरा दीवारों के पार शीर्षक से प्रकाशित हो चुका है। फ़िल्म उद्योग से संबद्ध रहे निदा फ़ाज़ली का निधन 8 फ़रवरी 2016 को हुआ। यहाँ तमाशा मेरे आगे किताब में संकलित एक अंश प्रस्तुत है।
पाठ-प्रवेश
कुदरत ने यह धरती उन तमाम जीवधारियों के लिए अता फरमाई थी जिन्हें खुद उसी ने जन्म दिया था। लेकिन हुआ यह कि आदमी नाम के कुदरत के सबसे अज़ीम करिश्मे ने धीरे-धीरे पूरी धरती को ही अपनी जागीर बना लिया और अन्य तमाम जीवधारियों को दरबदर कर दिया। नतीजा यह हुआ कि अन्य जीवधारियों की या तो नस्लें खत्म होती गईं या उन्हें अपना ठौर-ठिकाना छोड़कर कहीं और जाना पड़ा या फिर आज भी वे एक आशियाने की तलाश में मारे-मारे फिर रहे हैं।
इतना भर हुआ रहा होता तब भी गनीमत होती, लेकिन आदमी नाम के इस जीव की सब कुछ समेट लेने की भूख यहीं पूरी नहीं हुई। अब वह अन्य प्राणियों को ही नहीं खुद अपनी जात को भी बेदखल करने से ज़रा भी परहेज़ नहीं करता। आलम यह है कि उसे न तो किसी के सुख-दुख की चिंता है, न किसी को सहारा या सहयोग देने की मंशा ही। यकीन न आता हो तो इस पाठ को पढ़ जाइए और साथ ही याद कीजिएगा अपने आसपास के लोगों को। बहुत संभव है इसे पढ़ते हुए ऐसे बहुत लोग याद आएँ जो कभी न कभी किसी न किसी के प्रति वैसा ही बरताव करते रहे हों।
शब्दार्थ
- हाकिम- राजा/मालिक
- लसकर- सेना
- लकब- पद सूचक नाम
- प्रतीकात्मक- प्रतीक स्वरूप
- दालान- बरामदा
- सिमटना- सिकुड़ना
- जलजले- भूकंप
- सैलाब- बाढ़
- सैलानी- पर्यटक
- अज़ीज़- प्रिय
- मजार- दरगाह
- डेरा- अस्थाई पड़ाव
- अजान- नमाज के समय की सूचना जो मस्जिद की छत या दूसरी ऊंची जगह पर खड़े होकर दी जाती है।
पाठ का सार
बाइबिल के सोलोमन को कुरआन में सुलेमान कहा गया है। वे 1025 वर्ष पूर्व एक बादशाह थे । वे मुष्य की ही नहीं पशु पक्षियों की भी भाषा समझते थे ।
एक बार वे अपने लश्कर के साथ रास्ते से गुजर रहे थे रास्ते में कुछ चीटियाँ उनके घोड़ों की आवाज़ सुनकर अपने बिलों की तरफ वापस चल पड़ी। सुलेमान ने उनसे कहा “घबराओ नहीं “,सुलेमान को खुदा ने सबका रखवाला बनया है । मैं किसी के लिए मुसीबत नहीं हूँ। सबके लिए मुहब्बत हूँ ।यह कहकर वह अपनी मंजिल की ओर बढ़ने लगा । यह धरती किसी एक की नहीं है । सभी जीव जंतुओं का सामान अधिकार है। पहले पूरा संसार एक था मनुष्य ने ही इसे एक टुकड़े में बांटा है पहले लोग मिलजुलकर रहते थे अब वे बंट चुके हैं। बढती हुई आबादी में समंदर को पीछे धकेल दिया पेड़ों को राते से हटा दिया है। फैलते हुए प्रदुषण ने पंछियों को बस्तियों से भागना शुरू कर दिया है। प्रकृति का रूप बदल गया है। लेखक की माँ कहती थी कि सूरज ढले आँगन के पेड़ से पत्ते मत तोड़ो । दिया बत्ती के वक़्त फूल मत तोड़ो । दरिया पर जाओ तो उसे सलाम करो । कबूतरों को मत सताया करो । मुर्गे को मत परेशान करो वे अज़ान देकर सबको जगाता है।