पाठ 13: मानवीय करुणा की दिव्य चमक
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना (1927-1983)
लेखक परिचय
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का जन्म सन् 1927 में जिला बस्ती, उत्तर प्रदेश में हुआ। उनकी उच्च शिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हुई। वे अध्यापक, आकाशवाणी में सहायक प्रोड्यूसर विनमान में उपसंपादक और पराग के संपादक रहे। सन् 1983 में उनका आकस्मिक निधन हो गया।
सर्वेश्वर बहुमुखी प्रतिभा के साहित्यकार थे। वे कवि, कहानीकार, उपन्यासकार, निबंधकार और नाटककार थे। सर्वेश्वर को प्रमुख कृतियाँ हैं-काठ की घंटियाँ, कुआनो नदी, जंगल का दर्द, खूँटियों पर टँगे लोग (कविता-संग्रह); पागल कुत्तों का मसीहा, सोया हुआ जल (उपन्यास); लड़ाई (कहानी-संग्रह); बकरी (नाटक); भौं भौं खौं खौं, बतूता का जूता, लाख की नाक (बाल साहित्य)। चरचे और चरखे उनके लेखों का संग्रह है। खूँटियों पर टँगे लोग पर उन्हें साहित्य अकादेमी का पुरस्कार मिला।
पाठ -प्रवेश
संस्मरण स्मृतियों से बनता है और स्मृतियों की विश्वसनीयता उसे महत्त्वपूर्ण बनाती है। फ़ादर कामिल बुल्के पर लिखा सर्वेश्वर का यह संस्मरण इस कसौटी पर खरा उतरता है। अपने को भारतीय कहने वाले फ़ादर बुल्के जन्मे तो बेल्जियम (यूरोप) के रैम्सचैपल शहर में जो गिरजॉ, पादरियों, धर्मगुरुओं और संतों की भूमि कही जाती हैं परंतु उन्होंने अपनी कर्मभूमि बनाया भारत को। फ़ादर बुल्के एक संन्यासी थे परंतु पारंपरिक अर्थ में नहीं। सर्वेश्वर का फ़ादर बुल्के से अंतरंग संबंध था जिसकी झलक हमें इस संस्मरण में मिलती है। लेखक का मानना है कि जब तक रामकथा है, इस विदेशी भारतीय साधु को याद किया जाएगा तथा उन्हें हिंदी भाषा और बोलियों के अगाध प्रेम का उदाहरण माना जाता है।
शब्दार्थ
- आस्था-विश्वास
- देहरी-दहलीज
- आतुर-अधीर
- निर्लिप्त- आसक्ति रहित
- आवेश- जोश
- लबालब- भरा हुआ
- धर्माचार- धर्म का पालन या आचरण
- रूपांतर- किसी वस्तु का बदला हुआ रूप
- अकाट्य- जो कटे ना सके
- विरल- कम मिलने वाली
- ताबूत- शव या मुर्दा ले जाने वाला संदूक या बक्सा
- करील- झाड़ी के रूप में उगने वाला एक कंटीला और बिना पत्ते का पौधा गैरिक वसन- साधनों द्वारा धारण किए जाने वाले गेरुए वस्त्र
- श्रद्धानत- प्रेम और भक्ति युक्त पूज्य भाव