पाठ 11: बालगोविन भगत
रामवृक्ष बेनीपुरी
लेखक परिचय
रामवृक्ष बेनीपुरी का जन्म बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के बेनीपुर गाँव में सन् 1899 में हुआ। माता-पिता का निधन बचपन में ही हो जाने के कारण जीवन के आरंभिक वर्ष अभावों-कठिनाइयों और संघर्षों में बीते। दसवीं तक की शिक्षा प्राप्त करने के बाद वे सन् 1920 में राष्ट्रीय स्वाधीनता आंदोलन से सक्रिय रूप से जुड़ गए। कई बार जेल भी गए। उनका देहावसान सन् 1968 में हुआ।
15 वर्ष की अवस्था में बेनीपुरी जी की रचनाएँ पत्र-पत्रिकाओं में छपने लगीं। वे बेहद प्रतिभाशाली पत्रकार थे। उन्होंने अनेक दैनिक, साप्ताहिक एवं मासिक पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया, जिनमें तरुण भारत, किसान मित्र, बालक, में, योगी, जनता, जनवाणी और नयी धारा उल्लेखनीय हैं।
पाठ- प्रवेश
बालगोबिन भगत रेखाचित्र के माध्यम से लेखक ने एक ऐसे विलक्षण चरित्र का उद्घाटन किया है जो मनुष्यता, लोक संस्कृति और सामूहिक चेतना का प्रतीक है। वेशभूषा या बाह्य अनुष्ठानों से कोई संन्यासी नहीं होता, संन्यास का आधार जीवन के मानवीय सरोकार होते हैं। बालगोबिन भगत इसी आधार पर लेखक को संन्यासी लगत हैं। यह पाठ सामाजिक रूढ़ियों पर भी प्रहार करता है। इस रेखाचित्र की एक विशेषता यह है कि बालगोबिन भगत के माध्यम से ग्रामीण जीवन की सजीव झाँकी देखने क मिलती है।
शब्दार्थ
- मंझोला- ना बहुत बड़ा ना बहुत छोटा
- कमली- कंबल
- पतोहू- पुत्रवधू
- रोपनी- धान की रोपाई
- कलेवा- सुबह का जलपान
- पुरवाई- पूरब की ओर से बहने वाली हवा
- आधरतिया-आधी रात
- खंजड़ी- डफली के ढंग का परंतु आकार में उससे छोटा एक वाद्य यंत्र
- निस्तब्धता- सन्नाटा
- लोही- प्रातःकाल की लालिमा
- कुहासा -कोहरा
- कुश -एक प्रकार की नुकीली घास
- बोदा- कम बुद्धि वाला
- संबल- सहारा