पाठ 9: संगतकार

मंगलेश डबराल

कवि परिचय

मंगलेश डबराल का जन्म सन् 1948 में टिहरी गढ़वाल (उत्तरांचल) के काफलपानी गाँव में हुआ और शिक्षा-दीक्षा हुई देहरादून में। दिल्ली आकर हिंदी पेट्रियट, प्रतिपक्ष और आसपास में काम करने के बाद वे भोपाल में भारत भवन से प्रकाशित होने वाले पूर्वग्रह में सहायक संपादक हुए। इलाहाबाद और लखनऊ से प्रकाशित अमृत प्रभात में भी कुछ दिन नौकरी की।

सन् 1983 में जनसत्ता अखबार में साहित्य संपादक का पद सँभाला। कुछ समय सहारा समय में संपादन कार्य करने के बाद आजकल वे नेशनल बुक ट्रस्ट से जुड़े हैं।

मंगलेश डबराल के चार कविता संग्रह प्रकाशित हुए हैं- पहाड़ पर लालटेन, घर का रास्ता, हम जो देखते हैं और आवाज़ भी एक जगह है। साहित्य अकादेमी पुरस्कार, पहल सम्मान से सम्मानित मंगलेश की ख्याति अनुवादक के रूप में भी है।

पाठ-प्रवेश

संगतकार कविता गायन में मुख्य गायक का साथ देनेवाले संगतकार की भूमिका के महत्व पर विचार करती है। दृश्य माध्यम की प्रस्तुतियों जैसे-नाटक, फ़िल्म, संगीत, नृत्य के बारे में तो यह सही है ही; हम समाज और इतिहास में भी ऐसे अनेक प्रसंगों को देख सकते हैं जहाँ नायक की सफलता में अनेक लोगों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। कविता हममें यह संवेदनशीलता विकसित करती है कि उनमें से प्रत्येक का अपना-अपना महत्त्व है और उनका सामने न आना उनकी कमजोरी नहीं मानवीयता है। संगीत की सूक्ष्म समझ और कविता की दृश्यात्मकता इस कविता को ऐसी गति देती है मानो हम इसे अपने सामने घटित होता देख रहे हो।

काव्यांश-1

मुख्य गायक के चट्टान जैसे भारी स्वर का साथ देती

वह आवाज सुंदर कमजोर काँपती हुई थी वह मुख्य गायक का छोटा भाई है

या उसका शिष्य

या पैदल चलकर सीखने आने वाला दूर का कोई रिश्तेदार

मुख्य गायक की गरज में

वह अपनी गूँज मिलाता आया है प्राचीन काल से

भावार्थ - कवि अपनी इन पंक्तियों में कहता है कि जब मुख्य गायक अपने चट्टान जैसे भारी स्वर में गाता है, तब संगतकार हमेशा उसका साथ देता है। संगतकार की आवाज बहुत ही कमजोर, कापंती हुई प्रतीत हो रही है। लेकिन फिर भी वह बहुत ही मधुर थी, जो मुख्य गायक की आवाज के साथ मिलकर उसकी प्रभावशीलता को और बढ़ा देती है। कवि को ऐसा लगता है कि यह संगतकार गायक का कोई बहुत ही करीब का रिश्तेदार या जान-पहचान वाला है, या फिर ये उसका कोई शिष्य है, जो कि उससे गायकी सीख रहा है। इस प्रकार, वह बिना किसी की नजर में आए, निरंतर अपना कार्य करता रहता है

काव्यांश-2

गायक जब अंतरे की जटिल तानों के जंगल में

खो चुका होता है

या अपने ही सरगम को लाँघकर

चला जाता है भटकता हुआ एक अनहद में

तब संगतकार ही स्थायी को सँभाले रहता है

जैसे समेटता हो मुख्य गायक का पीछे छूटा हुआ सामान

जैसे उसे याद दिलाता हो उसका बचपन जब वह नौसिखिया था।

भावार्थ - इन पंक्तियों में कवि ने यह बताने का प्रयास किया है कि जब कोई महान संगीतकार अपने गाने की लय में डूब जाता है, तो उसे गाने के सुर-ताल की भनक नहीं पड़ती और वह कभी कभी अपने गाने में कहीं भटक-सा जाता है। आगे सुर कैसे पकड़ना है, यह उसे सम नहीं आता और वह उलझ-सा जाता है।

काव्यांश-3

तारसप्तक में जब बैठने लगता है उसका गला

प्रेरणा साथ छोड़ती हुई, उत्साह अस्त होता हुआ

आवाज से राख जैसा कुछ गिरता हुआ तभी मुख्य गायक को ढाँढस बँधाता

कहीं से चला आता है संगतकार का स्वर

कभी-कभी वह यों ही दे देता है उसका साथ

यह बताने के लिए कि वह अकेला नहीं है

और यह कि फिर से गाया जा सकता है

भावार्थ - उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि जब कभी मुख्य गायक ऊंचे स्वर में गाता है तो उसका गला बैठने लगता है। उससे सुर सँभलते नहीं हैं। तब गायक को ऐसा लगने लगता है जैसे कि अब उससे आगे गाया नहीं जाएगा। उसके भीतर निराशा छाने लगती है। उसका मनोबल खत्म होने लगता है। उसकी आवाज कांपने लगती हैं जिससे उसके मन की निराशा व हताशा प्रकट होने लगती है।

उस समय मुख्य गायक को हौसला बढ़ाने वाला व उसके अंदर उत्साह जगाने वाला संगतकार का मधुर स्वर सुनाई देता हैं। उस सुंदर आवाज को सुनकर मुख्य गायक फिर नए जोश से गाने लगता है

कवि आगे कहते हैं कि कभी- कभी संगतकार मुख्य गायक को यह बताने के लिए भी उसके स्वर में अपना स्वर मिलाता है कि वह अकेला नहीं है। कोई है जो उसका साथ हर वक्त देता है। और यह भी बताने के लिए कि जो राग या गाना एक बार गाया जा चुका है। उसे फिर से दोबारा गाया जा सकता है।

काव्यांश-4

गाया जा चुका राग

और उसकी आवाज में जो एक हिचक साफ सुनाई देती है

या अपने स्वर को ऊंचा न उठाने की जो कोशिश है

उसे विफलता नहीं

उसकी मनुष्यता समझा जाना चाहिए।

भावार्थ - उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि जब भी संगतकार मुख्य गायक के स्वर में अपना स्वर मिलता है यानि उसके साथ गाना गाता है तो उसकी आवाज में एक हिचक साफ सुनाई देती है। और उसकी हमेशा यही कोशिश रहती है कि उसकी आवाज मुख्य गायक की आवाज से धीमी रहे।

लेकिन हमें इसे संगतकार की कमजोरी या असफलता नही माननी चाहिए क्योंकि वह मुख्य गायक के प्रति अपना  सम्मान प्रकट करने के लिए ऐसा करता है। यानि अपना स्वर ऊँचा कर वह मुख्य गायक के सम्मान को ठेस नही पहुंचाना चाहता है। यह उसका मानवीय गुण हैं।