- Books Name
- Yash Tyagi Coaching Hindi Course A Book
- Publication
- ACERISE INDIA
- Course
- CBSE Class 10
- Subject
- Hindi
पाठ-3
सवैया एवं कवित्त
सवैया एवं कवित्त संवाद भावार्थ
(1) सवैया
पाँयनि नूपुर मंजु बजै, कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई।
साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई।
माथे किरीट बड़े दृग चंचल, मंद हँसी मुखचंद जुन्हाई।
जै जग-मंदिर-दीपक सुंदर, श्रीब्रजदूलह ‘देव’ सहाई॥
सवैया संवाद भावार्थ:- इस सवैये में कृष्ण के राजसी रूप का वर्णन किया गया है। कवि का कहना है कि कृष्ण के पैरों के पायल मधुर धुन सुना रहे हैं। कृष्ण ने कमर में करघनी पहन रखी है जिसकी धुन भी मधुर लग रही है। उनके साँवले शरीर पर पीला वस्त्र लिपटा हुआ है और उनके गले में फूलों की माला बड़ी सुंदर लग रही है। उनके सिर पर मुकुट सजा हुआ है जिसके नीचे उनकी चंचल आँखें सुशोभित हो रही हैं। उनका मुँह चाँद जैसा लग रहा है जिससे मंद मंद मुसकान की चाँदनी बिखर रही है। श्रीकृष्ण का रूप ऐसे निखर रहा है जैसे कि किसी मंदिर का दीपक जगमगा रहा हो।
(1) कवित्त
डार द्रुम पलना बिछौना नव पल्लव के,
सुमन झिंगूला सोहै तन छबि भारी दै।
पवन झूलावै, केकी-कीर बतरावैं ‘देव’,
कोकिल हलावै हुलसावै कर तारी दै।।
पूरित पराग सों उतारो करै राई नोन,
कंजकली नायिका लतान सिर सारी दै।
मदन महीप जू को बालक बसंत ताहि,
प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै॥
कवित्त संवाद भावार्थ:- इस कवित्त में बसंत ऋतु की सुंदरता का वर्णन किया गया है। उसे कवि एक नन्हे से बालक के रूप में देख रहे हैं। बसंत के लिए किसी पेड़ की डाल का पालना बना हुआ है और उस पालने पर नई पत्तियों का बिस्तर लगा हुआ है। बसंत ने फूलों से बने हुए कपड़े पहने हैं जिससे उसकी शोभा और बढ़ जाती है। पवन के झोंके उसे झूला झुला रहे हैं। मोर और तोते उसके साथ बातें कर रहे हैं। कोयल भी उसके साथ बातें करके उसका मन बहला रही है। ये सभी बीच-बीच में तालियाँ भी बजा रहे हैं। फूलों से पराग की खुशबू ऐसे आ रही जैसे की घर की बूढ़ी औरतें राई और नमक से बच्चे का नजर उतार रही हों। बसंत तो कामदेव के सुपुत्र हैं जिन्हें सुबह सुबह गुलाब की कलियाँ चुटकी बजाकर जगाती हैं।
(2) कवित्त
फटिक सिलानि सौं सुधारयौ सुधा मंदिर,
उदधि दधि को सो अधिकाइ उमगे अमंद।
बाहर ते भीतर लौं भीति न दिखैए ‘देव’,
दूध को सो फेन फैल्यो आँगन फरसबंद।
तारा सी तरुनि तामें ठाढ़ी झिलमिली होति,
मोतिन की जोति मिल्यो मल्लिका को मकरंद।
आरसी से अंबर में आभा सी उजारी लगै,
प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद॥
कवित्त संवाद भावार्थ:- इस कवित्त में चाँदनी रात की सुंदरता का बखान किया गया है। चाँदनी का तेज ऐसे बिखर रहा है जैसे किसी स्फटिक के प्रकाश से धरती जगमगा रही हो। चारों ओर सफेद रोशनी ऐसे लगती है जैसे की दही का समंदर बह रहा हो। इस प्रकाश में दूर दूर तक सब कुछ साफ-साफ दिख रहा है। ऐसा लगता है कि पूरे फर्श पर दूध का झाग फैल गया है। उस फेन में तारे ऐसे लगते हैं जैसे कि तरुणाई की अवस्था वाली लड़कियाँ खड़ी हों। ऐसा लगता है कि मोतियों को चमक मिल गई है या जैसे बेले के फूल को रस मिल गया है। पूरा आसमान किसी दर्पण की तरह लग रहा है जिसमें चारों तरफ रोशनी फैली हुई है। इन सब के बीच पूरनमासी का चाँद ऐसे लग रहा है जैसे उस दर्पण में राधा का प्रतिबिंब दिख रहा हो।
कठिन शब्दो के अर्थ
- पाँयनी - पैटों में
- जूपुर- पायल
- मंजु- सुंदर
- कटि- कमर
- किंकिनि- करधनी, पैरों में पहनने वाला आभ्रूषण।
- ध्ुनि – ध्वनि
- मधुराई – सुन्दरता
- साँवरे – साँवले
- अंग- शरीर
- लसै – सुभोषित
- पट – वस्त्र
- पीत- पीला
- हिये- हृदय पर
- हुलसै - प्रसन्नता से विभोर
- किरीट- मुकुट
- मुखचंद - मुख रुपी चन्द्रमा
- जुन्हाई- चाँदनी
- द्रुम – पैड़
- सुमन झिंगुला - फूलों का झबला।
- केंकी – मोर
- कीर- तोता
- हलवे-हुलसावे - बातों की मिठास
- उतारी करे राई नोन -जिस बची को नजर लगी हो उसके सिर के चारों ओट राय नमक घुमाकर आग में जलाने का टोठका।
- कंजकली - कमल की कली
- चटकारी – चुटकी
- फठिक (स्फटिक) - प्राकृतिक क्रिस्टल
- सिलानी - शीला पर
- उदधि- समुद्र
- उमगे- उमड़ना
- अमंद- जो कम ना हो
- भीति- दीवार
- मल्लिका- बेल की जाती का एक सफैद फूल
- मकरंद- फूलों का ट॒स
- आरती – आइना
देव का जीवन परिचय
हिंदी की ब्रजभाषा काव्य के अंतर्गत देव को महाकवि का गौरव प्राप्त है। उनका पूरा नाम देवदत्त था। उनका जन्म इटावा (उ.प्र.) में हुआ था। यद्यपि ये प्रतिभा में बिहारी, भूषण, मतिराम आदि समकालीन कवियों से कम नहीं, वरन् कुछ बढ़कर ही सिद्ध होते हैं, फिर भी इनका किसी विशिष्ट राजदरबार से संबंध न होने के कारण इनकी वैसी ख्याति और प्रसिद्धि नहीं हुई। इनके काव्य ग्रंथों की संख्या 52 से 72 तक मानी जाती है। उनमें से रसविलास, भावविलास, भवानी विलास और काव्यरसायन प्रमुख रचनाएँ मानी जाती हैं।
देव रीतिकालीन कवि हैं। रीतिकाल का सम्बन्ध दरबारों व आश्रयदाताओं से बहुत ज्यादा था, जिस कारण उनकी कविताओं में दरबारी व राजसीय संस्कृति का प्रमुखता से वर्णन है। देव ने इसके अलावा प्राकृतिक सौंदर्य को भी अपनी कविताओं में प्रमुखता से शामिल किया। शब्दों की आवृत्ति का प्रयोग कर उन्होंने सुन्दर ध्वनि-चित्र भी प्रस्तुत किये हैं। अपनी रचनाओं में वे अलंकारों का भरपूर प्रयोग करते थे।