पाठ-7

छाया मत छूना

छाया मत छूना कविता का भावार्थ

छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना।
जीवन में हैं सुरंग सुधियाँ सुहावनी
छवियों की चित्र-गंध फैली मनभावनी;
तन-सुगंध शेष रही, बीत गई यामिनी,
कुंतल के फूलों की याद बनी चाँदनी।
भूली सी एक छुअन बनता हर जीवित क्षण
छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना।

छाया मत छूना कविता का भावार्थ :- इस कविता में कवि ने बताया है कि हमें अपने भूतकाल को पकड़ कर नहीं रखना चाहिए, चाहे उसकी यादें कितनी भी सुहानी क्यों हो। जीवन में ऐसी कितनी सुहानी यादें रह जाती हैं। आँखों के सामने भूतकाल के कितने ही मोहक चित्र तैरने लगते हैं। प्रेयसी के साथ रात बिताने के बाद केवल उसके तन की सुगंध ही शेष रह जाती है। कोई भी सुहानी चाँदनी रात बस बालों में लगे बेले के फूलों की याद दिला सकती है। जीवन का हर क्षण किसी भूली सी छुअन की तरह रह जाता है। कुछ भी स्थाई नहीं रहता है। इसलिए हमें अपने भूतकाल को कभी भी पकड़ कर नहीं रखना चाहिए।

यश है या वैभव है, मान है सरमाया;
जितना ही दौड़ा तू उतना ही भरमाया।
प्रभुता का शरण बिंब केवल मृगतृष्णा है,
हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है।
जो है यथार्थ कठिन उसका तू कर पूजन
छाया मत छूनामन, होगा दुख दूना।

छाया मत छूना कविता का भावार्थ :- यश या वैभव या पीछे की जमापूँजी; कुछ भी बाकी नहीं रहता है। आप जितना ही दौड़ेंगे उतना ज्यादा भूलभुलैया में खो जाएँगे; क्योंकि भूतकाल में बहुत कुछ घटित हो चुका होता है। अपने भूतकाल की कीर्तियों पर किसी बड़प्पन का अहसास किसी मृगमरीचिका की तरह है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हर चाँद के पीछे एक काली रात छिपी होती है। इसलिए भूतकाल को भूलकर हमें अपने वर्तमान की ओर ध्यान देना चाहिए।

दुविधा हत साहस है, दिखता है पंथ नहीं,
देह सुखी हो पर मन के दुख का अंत नहीं।
दुख है चाँद खिला शरद-रात आने पर,
क्या हुआ जो खिला फूल रस-बसंत जाने पर?
जो मिला भूल उसे कर तू भविष्य वरण,
छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना।

छाया मत छूना कविता का भावार्थ :- कई बार ऐसा होता है कि हिम्मत होने के बावजूद आदमी दुविधा में पड़ जाता है और उसे सही रास्ता नहीं दिखता। कई बार आपका शरीर तो स्वस्थ रहता है लेकिन मन के अंदर हजारों दुख भरे होते हैं। कई लोग छोटी या बड़ी बातों पर दुखी हो जाते हैं। जैसे कि सर्दियों की रात में चाँद नहीं दिखने पर। यह उसी तरह है जैसे कि पास तो हो गए लेकिन 90% मार्क नहीं आए। कई बार लोग उचित समय पर कुछ प्राप्त कर पाने की वजह से दुखी रहते हैं। लेकिन जो मिले उसे भूल जाना ही बेहतर होता है। भूतकाल को छोड़कर हमें अपने वर्तमान पर ध्यान देना चाहिए और एक सुनहरे भविष्य के लिए ठोस कदम उठाना चाहिए।

कठिन शब्दो के अर्थ

  • दूना दुगना
  • सुरंग - रंग-बिरंगी
  • सुधियाँयादें
  • मनभावनी - मन को लुभाने वाली
  • यामिनी - तारों भरी चांदनी रात
  • कुंतल- लम्बे केश
  • यश प्रश्षिद्धि
  • सरमाया पूँजी
  • भरमाया- भ्रम में डाला
  • प्रभुता का शरण बिम्ब - बड़प्पन का अहसास
  • मृगतृष्णा - कड़ी धूप में टेतीले मैदानों में जल के होने का छलावा
  • चन्द्रिका चांदनी
  • कृष्णा काली
  • यथार्थ- सत्य
  • दुविधा हत - दुविधा में फँ सा हुआ
  • पंथ- राह
  • टस-बसंत - रस से भरपूर मतवाली वसंत कऋतू।
  • वरण- अपनाना

गिरिजाकुमार माथुर का जीवन परिचय

गिरिजा कुमार माथुर का जन्म ग्वालियर जिले के अशोक नगर कस्बे में 22 अगस्त सन 1918 में हुआ था। वे एक कवि, नाटककार और समालोचक के रूप में जाने जाते हैं।  गिरिजाकुमार की प्रारम्भिक शिक्षा घर पर ही हुई। उनके पिता ने घर में ही उन्हें अंग्रेजी, इतिहास, भूगोल आदि पढाया। स्थानीय कॉलेज से इण्टरमीडिएट करने के बाद वे 1936 में स्नातक उपाधि के लिए ग्वालियर चले गये। 1938 में उन्होंने बी.. किया, 1941 में उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय में एम.. किया तथा वकालत की परीक्षा भी पास की। सन 1940 में उनका विवाह दिल्ली में कवयित्री शकुन्त माथुर से हुआ। शुरुआत में उन्होंने वकालत की, परन्तु बाद में उन्होंने आकाशवाणी एवं दूरदर्शन में नौकरी की।

काव्यगत विशेषताएँ :- गिरिजाकुमार की काव्यात्मक शुरुआत 1934 में ब्रजभाषा के परम्परागत कवित्त-सवैया लेखन से हुई। उनकी रचना का प्रारम्भ द्वितीय विश्वयुद्ध की घटनाओं से उत्पन्न प्रतिक्रियाओं से युक्त है तथा भारत में चल रहे राष्ट्रीय स्वतंत्रता आन्दोलन से प्रभावित है। कविता के अतिरिक्त वे एकांकी नाटक, आलोचना, गीति-काव्य तथा शास्त्रीय विषयों पर भी लिखते रहे हैं। भारतीय सांस्कृतिक सम्बन्ध परिषद की साहित्यिक पत्रिकागगनांचलका संपादन करने के अलावा उन्होंने कहानी, नाटक तथा आलोचनाएँ भी लिखी हैं। उनका ही लिखा एक भावान्तर गीतहम होंगे कामयाबसमूह गान के रूप में अत्यंत लोकप्रिय है।