लखनवी अन्दाज
- Books Name
- Yash Tyagi Coaching Hindi Course A Book
- Publication
- ACERISE INDIA
- Course
- CBSE Class 10
- Subject
- Hindi
पाठ-12
लखनवी अंदाज़
लखनवी अंदाज पाठ का सार
लखनवी अंदाज कहानी की शुरुआत कुछ इस तरह होती है। लेखक को अपने घर से थोड़ी दूर कहीं जाना था। लेखक ने भीड़ से बचने , एकांत में किसी नई कहानी के बारे में सोचने व ट्रेन की खिड़की से बाहर के प्राकृतिक दृश्यों को निहारने के लिए लोकल ट्रेन (मुफस्सिल) के सेकंड क्लास का कुछ महंगा टिकट खरीद लिया।
जब वो स्टेशन पहुंचे तो गाड़ी छूटने ही वाली थी। इसीलिए वो सेकंड क्लास के एक छोटे डिब्बे को खाली समझकर उसमें चढ़ गए लेकिन जिस डिब्बे को वो खाली समझकर चढ़े थे , वहां पहले से ही एक लखनवी नवाब बहुत आराम से पालथी मारकर बैठे हुए थे और उनके सामने दो ताजे खीरे एक तौलिए के ऊपर रखे हुए थे।
लेखक को देख नवाब साहब बिल्कुल भी खुश नही हुए क्योंकि उन्हें अपना एकांत भंग होता हुआ दिखाई दिया। उन्होंने लेखक से बात करने में भी कोई उत्साह या रूचि नहीं दिखाई । लेखक उनके सामने वाली सीट में बैठ गए।
लेखक खाली बैठे थे और कल्पनायें करने की उनकी पुरानी आदत थी। इसलिए वो उनके आने से नवाब साहब को होने वाली असुविधा का अनुमान लगाने लगे। वो सोच रहे थे शायद नवाब साहब ने अकेले सुकून से यात्रा करने की इच्छा से सेकंड क्लास का टिकट ले लिया होगा ।
लेकिन अब उनको यह देखकर बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा है कि शहर का कोई सफेदपोश व्यक्ति उन्हें सेकंड क्लास में सफर करते देखें। उन्होंने अकेले सफर में वक्त अच्छे से कट जाए यही सोचकर दो खीरे खरीदे होंगे। परंतु अब किसी सफेदपोश आदमी के सामने खीरा कैसे खाएं।
नवाब साहब गाड़ी की खिड़की से लगातार बाहर देख रहे थे और लेखक कनखियों से नवाब साहब की ओर देख रहे थे।
अचानक नवाब साहब ने लेखक से खीरा खाने के लिए पूछा लेकिन लेखक ने नवाब साहब को शुक्रिया कहते हुए मना कर दिया। उसके बाद नवाब साहब ने बहुत ही तरीके से खीरों को धोया और उसे छोटे-छोटे टुकड़ों (फाँक) में काटा। फिर उसमें जीरा लगा नमक , मिर्च लगा कर उनको तौलिये में करीने से सजाया।
इसके बाद नवाब साहब ने एक और बार लेखक से खीरे खाने के बारे में पूछा। क्योंकि लेखक पहले ही खीरा खाने से मना कर चुके थे इसीलिए उन्होंने अपना आत्म सम्मान बनाए रखने के लिए इस बार पेट खराब होने का बहाना बनाकर खीरा खाने से मना कर दिया।
लेखक के मना करने के बाद नवाब साहब ने नमक मिर्ची लगे उन खीरे के टुकड़ों को देखा। फिर खिड़की के बाहर देख कर एक गहरी सांस ली। उसके बाद नवाब साहब खीरे की एक फाँक (टुकड़े) को उठाकर होठों तक ले गए , फाँक को सूंघा। स्वाद के आनंद में नवाब साहब की पलकें मूँद गई । मुंह में भर आए पानी का घूंट गले में उतर गया।उसके बाद नवाब साहब ने खीरे के उस टुकड़े को खिड़की से बाहर फेंक दिया।
इसी प्रकार नवाब साहब खीरे के हर टुकड़े को होठों के पास ले जाते , फिर उसको सूंघते और उसके बाद उसे खिड़की से बाहर फेंक देते। खीरे के सारे टुकड़ों को बाहर फेंकने के बाद उन्होंने आराम से तौलिए से हाथ और होंठों को पोछा। और फिर बड़े गर्व से लेखक की तरफ देखा। जैसे लेखक को कहना चाह रहे हो कि “यही है खानदानी रईसों का तरीका”।
नवाब साहब खीरे की तैयारी और इस्तेमाल से थक कर लेट गए। लेखक ने सोचा कि “क्या सिर्फ खीरे को सूंघकर ही पेट भरा जा सकता है”। तभी नवाब साहब ने एक जोरदार डकार ली और बोले “खीरा लजीज होता है पर पेट पर बोझ डाल देता है”।
यह सुनकर लेखक के ज्ञान चक्षु खुल गए। उन्होंने सोचा कि जब खीरे की सुगंध और स्वाद की कल्पना से ही पेट भर कर डकार आ सकती है , तो बिना किसी विचार , घटना , कथावस्तु और पात्रों के , सिर्फ लेखक की इच्छा मात्र से “नई कहानी” भी तो लिखी जा सकती है।
कठिन शब्दो के अर्थ
- मुफ़स्सिल - केंद्र में स्थित जगर के ड्र्व-गिर्द स्थान
- उतावली – जल्दबाजी
- प्रतिकूल – विपटीत
- सफ़ेदपोश - भद्र व्यक्ति
- अपदार्थ वस्तु - तुच्छ वस्तु
- गवारा ना होना- मन के अनुकूल ना होना
- लथेड़ लेना - लपेठ लेजा
- एहतियात – सावधानी
- करीने से - ढंग से
- सुर्खी – लाली
- भाव-भंगिमा- मन के विचार को प्रकट करने वाली शारीरिक क्रिया
- स्फुरन- फड़कना
- प्लावित होना - पानी भर जाना
- पनियाती – र॒सीली
- तलब – इच्छा
- मेंदा- पेट
- सतृष्ण - इच्छा सहित
- तसलीम - सम्मान में
- सिर ख़म करना - सिट झुकाना
- तहजीब – शिष्टता
- जफासत – स्वच्छता
- जर्फीस – बढ़िया
- एब्सट्रैक्ट – सूक्ष्म
- सकील- आसानी से ना पचने वाला
- जामुराद- बेकार चीज़
- जानचक्षु- जान र्पी नेत्र
यशपाल का जीवन परिचय
लखनवी अंदाज कहानी के लेखक यशपाल हैं।
यशपाल का जन्म सन 1903 में पंजाब के फिरोजपुर छावनी में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा कांगड़ा में हुई। उन्होंने लाहौर के नेशनल कॉलेज से बी.ए किया। यही उनका परिचय भगत सिंह और सुखदेव से हुआ। इसके बाद वो भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ गए। स्वाधीनता आंदोलन के दौरान वो कई बार जेल भी गए। उनकी मृत्यु 1976 में हुई।
यशपाल की रचनायें
यशपाल की रचनाओं में आम आदमी के सरोकारों की उपस्थिति साफ दिखती है। वो यथार्थवादी शैली के विशिष्ट रचनाकार थे। सामाजिक विषमता , राजनीतिक पाखंड और रूढ़िवादियों के खिलाफ उनकी रचनाएं मुखर हैं।
कहानी संग्रह – ज्ञानदान , तर्क का तूफान , पिंजरे की उड़ान , वा दुलिया , फूलों का कुर्ता।
उपन्यास – झूठा सच (यह भारत विभाजन की त्रासदी का मार्मिक दस्तावेज है)
लखनवी अन्दाज
पाठ-12: लखनवी अंदाज
यशपाल
लेखक परिचय
यशपाल का जन्म सन् 1903 में पंजाब के फीरोजपुर छावनी में हुआ। प्रारंभिक शिक्षा काँगड़ा में ग्रहण करने के लाहौर के नेशनल कॉलेज से उन्होंने बी.ए. किया। वहाँ उनका परिचय भगत सिंह और सुखदेव से हुआ। स्वाधीनता सम की क्रांतिकारी धारा से जुड़ाव के कारण वे जेल भी उनका मृत्यु सन् 1976 में हुई।
यशपाल की रचनाओं में आम आदमी के सरोकारों की संस्थिति है। वे यथार्थवादी शैली के विशिष्ट रचनाकार हैं। सामाजिक विषमता, राजनैतिक पाखंड और रूढ़ियों ई खिलाफ़ उनकी रचनाएँ मुखर हैं। उनके कहानी संग्रहों में ज्ञानदान, तर्क का तूफ़ान, पिंजरे की उड़ान, वा दुलिया, फूलो का त उल्लेखनीय हैं। उनका झूठा सच उपन्यास भारत भाजन की त्रासदी का मार्मिक दस्तावेज़ है। अमिता, दिव्या, र्टी कामरेड, दादा कामरेड, मेरी तेरी उसकी बात, के अन्य प्रमुख उपन्यास हैं। भाषा की स्वाभाविकता और नोवता उनकी रचनागत विशेषता है।
पाठ प्रवेश
यूँ तो यशपाल ने लखनवी अंदाज व्यंग्य यह साबित करने के लिए लिखा था कि बिना कथ्य के कहानी नहीं लिखी जा सकती परंतु एक स्वतंत्र रचना के रूप में इस रचना को पढ़ा जा सकता है। यशपाल उस पतनशील सामंती वर्ग पर कटाक्ष करते हैं। जो वास्तविकता से बेखबर एक बनावटी जीवन शैली का आदी है। कहना न होगा कि आज के समय में भी ऐसी परजीवी संस्कृति को देखा जा सकता है।
शब्दार्थ
- मुफस्सिल - केंद्र नगर के इर्द -गिर्द के स्थान
- सफेदपोश -भद्र व्यक्ति
- किफायत -मितव्यता
- आदाब अर्ज -अभिवादन का एक ढंग
- गुमान- भ्रम
- एहतियात-सावधानी
- बुरक देना-छिड़क देना
- स्फुरण- फड़कना
- प्लावित- पानी भर जाना
- मेदा-अमाशय
- तसलीम-सम्मान में
- तहज़ीब-शिष्टता
- नफासत-स्वच्छता
- नजाकत- कोमलता