- Books Name
- Yash Tyagi Coaching Hindi Course A Book
- Publication
- ACERISE INDIA
- Course
- CBSE Class 10
- Subject
- Hindi
पाठ-5
उत्साह एवं अट नहीं रही है
(1) उत्साह
(1)
बादल, गरजो!
घेर घेर घोर गगन, धाराधर ओ!
ललित ललित, काले घुंघराले,
बाल कल्पना के से पाले,
विद्युत छबि उर में, कवि, नवजीवन वाले!
वज्र छिपा, नूतन कविता
फिर भर दो
बादल गरजो!
कविता का भावार्थ :- इस कविता में कवि ने बादल के बारे में लिखा है। कवि बादलों से गरजने का आह्वान करता है। कवि का कहना है कि बादलों की रचना में एक नवीनता है। काले-काले घुंघराले बादलों का अनगढ़ रूप ऐसे लगता है जैसे उनमें किसी बालक की कल्पना समाई हुई हो। उन्हीं बादलों से कवि कहता है कि वे पूरे आसमान को घेर कर घोर ढ़ंग से गर्जना करें। बादल के हृदय में किसी कवि की तरह असीम ऊर्जा भरी हुई है। इसलिए कवि बादलों से कहता है कि वे किसी नई कविता की रचना कर दें और उस रचना से सबको भर दें।
(2)
विकल विकल, उन्मन थे उन्मन
विश्व के निदाघ के सकल जन,
आए अज्ञात दिशा से अनंत के घन !
तप्त धरा, जल से फिर
शीतल कर दो –
बादल, गरजो
कविता का भावार्थ:- इन पंक्तियों में कवि ने तपती गर्मी से बेहाल लोगों के बारे में लिखा है। सभी लोग तपती गर्मी से बेहाल हैं और उनका मन कहीं नहीं लग रहा है। ऐसे में कई दिशाओं से बादल घिर आए हैं। कवि उन बादलों से कहता है कि तपती धरती को अपने जल से शीतल कर दें।
(2) अट नहीं रही है
(1)
अट नहीं रही है
आभा फागुन की तन
सट नहीं रही है।
कविता का भावार्थ:- इस कविता में कवि ने वसंत ऋतु की सुंदरता का बखान किया है। वसंत ऋतु का आगमन हिंदी के फागुन महीने में होता है। ऐसे में फागुन की आभा इतनी अधिक है कि वह कहीं समा नहीं पा रही है।
(2)
कहीं साँस लेते हो,
घर-घर भर देते हो,
उड़ने को नभ में तुम
पर-पर कर देते हो,
आँख हटाता हूँ तो
हट नहीं रही है।
कविता का भावार्थ:- वसंत जब साँस लेता है तो उसकी खुशबू से हर घर भर उठता है। कभी ऐसा लगता है कि बसंत आसमान में उड़ने के लिए अपने पंख फड़फड़ाता है। कवि उस सौंदर्य से अपनी आँखें हटाना चाहता है लेकिन उसकी आँखें हट नहीं रही हैं।
(3)
पत्तों से लदी डाल
कहीं हरी, कहीं लाल,
कहीं पड़ी है उर में
मंद गंध पुष्प माल,
पाट-पाट शोभा श्री
पट नहीं रही है।
कविता का भावार्थ:- पेड़ों पर नए पत्ते निकल आए हैं, जो कई रंगों के हैं। कहीं-कहीं पर कुछ पेड़ों के गले में लगता है कि भीनी-भीनी खुशबू देने वाले फूलों की माला लटकी हुई है। हर तरफ सुंदरता बिखरी पड़ी है और वह इतनी अधिक है कि धरा पर समा नहीं रही है।
कठिन शब्दो के अर्थ
- धराधर – बादल
- उन्मन- अनमनापन
- निदाघ – गर्मी
- सकल- सब
- आभा- चमक
- वज् – कठोर
- अनंत - जिसका अंत ना हो
- शीतल- ठंडा
- छबि- सौंदर्य
- उर- हृदय
- विकल – बैचैन
- अट- समाना
- पाठट-पाद - जगह-जगह
- शोभा श्री - सौंदर्य से भरपूर
- पट - समा नही रही
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जीवन परिचय
दुखों व संघर्षों से भरा जीवन जीने वाले विस्तृत सरोकारों के कवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का जीवन काल सन 1899-1961 तक रहा। उनकी रचनओं में क्रांति, विद्रोह और प्रेम की उपस्थिति देखने को मिलती है। उनका जन्मस्थान कवियों की जन्मभूमि यानि बंगाल में हुआ। साहित्य के क्षेत्र में उनका नाम अनामिका, परिमल, गीतिका आदि कविताओं और निराला रचनावली के नाम से प्रकाशित उनके संपूर्ण साहित्य से हुआ, जिसके आठ खंड हैं। स्वामी परमहंस एवं विवेकानंद जैसे महान स्वतंत्रता सेनानियों से प्रेरणा लेने वाले और उनके बताए पथ पर चलने वाले निराला जी ने भी स्वंत्रता-संघर्ष में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।