पाठ 14: एक कहानी यह भी

मन्नू भंडारी -1931

लेखिका परिचय

मन्नू भंडारी का जन्म सन् 1931 में गाँव भानपुरा, जिला मन मंदसौर (मध्य प्रदेश) में हुआ परंतु उनकी इंटर तक की शिक्षा-दीक्षा हुई राजस्थान के अजमेर शहर में। बाद में उन्होंने हिंदी में एम.ए. किया। दिल्ली के मिरांडा हाउस कॉलिज में अध्यापन कार्य से अवकाश प्राप्ति के बाद आजकल दिल्ली में ही रहकर स्वतंत्र लेखन कर रही हैं।

स्वातंत्र्योत्तर हिंदी कथा साहित्य की प्रमुख हस्ताक्षर मन्नू भंडारी की प्रमुख रचनाएँ हैं- एक प्लेट सैलाब, मैं हार गई, यही सच है, त्रिशंकु (कहानी-संग्रह); आपका बंटी, महाभोज (उपन्यास)। इसके अलावा उन्होंने फ़िल्म एवं टेलीविज़न धारावाहिकों के लिए पटकथाएँ भी लिखी हैं। उनकी साहित्यिक उपलब्धियों के लिए हिंदी अकादमी के शिखर सम्मान सहित उन्हें अनेक पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं जिनमें भारतीय भाषा परिषद्, कोलकाता, राजस्थान संगीत नाटक अकादमी, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के पुरस्कार शामिल हैं।

पाठ प्रवेश

एक कहानी यह भी के संदर्भ में सबसे पहले तो हम यह जान लें कि मन्नू भंडारी ने पारिभाषिक अर्थ में कोई सिलसिलेवार आत्मकथा नहीं लिखी है। अपने आत्मकथ्य में उन्होंने उन व्यक्तियों और घटनाओं के बारे में लिखा है जो उनके लेखकीय जीवन से जुड़े हुए हैं। संकलित अंश में मन्नू जी के किशोर जीवन से जुड़ी घटनाओं के साथ उनके पिताजी और उनकी कॉलिज की प्राध्यापिका शीला अग्रवाल का व्यक्तित्व विशेष तौर पर उभरकर आया है, जिन्होंने आगे चलकर उनके लेखकीय व्यक्तित्व के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। लेखिका ने यहाँ बहुत ही खूबसूरती से साधारण लड़की के असाधारण बनने के प्रारंभिक पड़ावों को प्रकट किया है। सन् ’46-’47 की आजादी की आँधी ने मन्नू जी को भी अछूता नहीं छोड़ा। छोटे शहर की युवा होती लड़की ने आजादी की लड़ाई में जिस तरह भागीदारी की उसमें उसका उत्साह, ओज, संगठन-क्षमता और विरोध करने का तरीका देखते ही बनता है

शब्दार्थ

  • अहवादी-घमंडी
  • भग्नावशेष-खंडहर
  • विस्फारित-और अधिक फैलना
  • आक्रांत-कष्टग्रस्त
  • निषिद्ध-जिस पर रोक लगाई गई हो
  • वर्चस्वदबदबा