पाठ 2: वाच्य

वाच्य की परिभाषा- क्रिया के जिस रुप से यह जाना जाए कि वाक्य में क्रिया द्वारा कही गई बात का विषय कर्त्ता है, अथवा कर्म है, या भाव है, उसे वाच्य कहते हैं।

वाच्य के भेद

1 कर्तृवाच्य

2 कर्मवाच्य

3 भाववाच्य

कर्तृवाच्य- जिस वाक्य में कर्त्ता की प्रधानता होती है, उसे कर्तृवाच्य कहते हैं।

जैसे-

मोहन पत्र लिखता है।

श्याम स्कूल जाता है।

रेखांकित वाक्यांश लिखता है, जाता है यह क्रिया है।तथा मुख्य उद्देश्य (कर्त्ता) मोहन और श्याम है।

कर्तृवाच्य में क्रिया सकर्मक और अकर्मक दोनों रूप में हो सकती है ।

सकर्मक क्रिया

मोहन पत्र लिखता है।

अकर्मक क्रिया

मोहन सोता है।

कर्मवाच्य- जिस वाक्य में कर्म की प्रधानता होती है, उसे कर्म वाच्य कहते हैं।

जैसे-

मोहन के द्वारा पत्र लिखा गया।

सीता ने रोटी खाई।

रेखांकित वाक्यांश में कर्म की प्रधानता दिखाई गई है। वाक्य में कर्म के आधार पर क्रिया का लिंग और वचन आधारित है। कर्मवाच्य में क्रिया हमेशा सकर्मक होती है।

भाववाच्य- जिस वाक्य में क्रिया कर्त्ता के भाव पर आधारित होती है, उसे भाववाच्य कहते है।

जैसे-

लंगड़े से चला नहीं जाता

बच्चे से रोया नहीं जाता।

रेखांकित वाक्यांश कर्त्ता के भाव को दर्शा रहा है। भाववाच्य में क्रिया हमेशा अकर्मक होती है।