मैं क्यों लिखता हूँ?

पाठ 5: मैं क्यों लिखता हूं

अज्ञेय (1911-1987)

लेखक परिचय

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ का जन्म सन् 1911 उ.प्र. के देवरिया जिले के कसिया (कुशीनगर) इलाके में हुआ। प्रारंभिक शिक्षा जम्मू-कश्मीर में हुई और बी.एस.सी. लाहौर से की। क्रांतिकारी आंदोलन में भाग लेने के कारण अज्ञेय को जेल भी जाना पड़ा।

उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं- भग्नदूत, चिंता, अरी ओ करुणा प्रभामय, इंद्रधनु रौंदे हुए ये, आँगन के पार द्वार (काव्य-संग्रह), शेखर: एक जीवनी, नदी के द्वीप (उपन्यास), विपथगा, शरणार्थी, जयदोल (कहानी-संग्रह), त्रिशंकु, आत्मनेपद (निबंध). अरे यायावर रहेगा याद (यात्रा – वृत्तांत) । अज्ञेय द्वारा संपादित तार सप्तक सहित चार सप्तकों का समकालीन हिंदी कविता के इतिहास में महत्त्वपूर्ण स्थान है। साहित्य अकादेमी एवं ज्ञानपीठ पुरस्कार सहित अज्ञेय को अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से भी पुरस्कृत किया गया। सन् 1987 में उनका देहावसान हो गया।

बौद्धिकता की छाप अज्ञेय के संपूर्ण लेखन में मिलती है। उनके लेखन के वैयक्तिकता की पहचान की समस्या है।

पाठ-प्रवेश

हिंदी में एक समय इस पर चर्चा हुई थी कि लेखक क्यों लिखता है, किसके लिए लिखता है, उसके लेखन का प्रयोजन क्या है? अज्ञेय का यह निबंध भी उसी बहस से जुड़ा है।

अज्ञेय ने अपने इस छोटे से निबंध में यह बताया है कि रचनाकार की भीतरी विवशता ही उसे लेखन के लिए मजबूर करती है और लिखकर ही रचनाकार उससे मुक्त हो पाता है। अज्ञेय का मानना है कि प्रत्यक्ष अनुभव जब अनुभूति का रूप धारण करता है तभी रचना पैदा होती है। अनुभव के बिना अनुभूति नहीं होती परंतु जरूरी नहीं कि हर अनुभव अनुभूति बने। अनुभव जब भाव-जगत और संवेदना का हिस्सा बनता है तभी वह कलात्मक अनुभूति में रूपांतरित होता है। अज्ञेय ने हिरोशिमा कविता के उदाहरण द्वारा अपनी बात स्पष्ट की है।

शब्दार्थ

  • अभ्यांतर-भीतर का, अंदरूनी
  • उन्मेष- प्रकाश, दीप्ति
  • निमित्त- कारण
  • रुद्ध-बंद हो गई
  • प्रसूत-उत्पन्न